बैंक जब पूरी तरह से लुट गए , तब जगी सरकार
बैंक जब पूरी तरह से लुट गए , तब जगी सरकार 

मनोहर मनोज 

देश में बैकों के कुल कर्जे क करीब दस फीसदी हिस्से जिसकी कुल रकम करीब दस लाख करोड़ रुपये बैठती है, का अभी कोई माइ बाप नही। यह रकम जो बैंकिंग शब्दावली में एपपीए यानी गैर उत्पादक परिसंपत्ति कही जाती है,भारत के बैंकिंग इतिहास में न केवल सर्वाधिक है बल्कि दुनिया में सर्वाधिक एनपीए वाले देशों की सूची में तीसरे नंबर पर दर्ज हो चुकी है। 

यानी पहले तो हम बैंकों की लूट, एटीएम मशीन की सेंधमारी तथा बैंकों के कैश वैन के अगवा करने की बारंबार खबरों और घटनाओं से रूबरू हुआ करते थे। बैंकों में फर्जीबाड़ा, डिफाल्टरी तथा घोटाले की घटनाओं से भी हम वाकिफ हुआ करते थे। पर अब तो लगता है कि देश के बैंक घोटाले पर घोटाले, भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार, लूट पर लूट और इसकी बदौलत घाटे पर घाटे की सबसे बड़ी मिसाल बन चुके हैं। लगता है कि बैंकों में पिछले एक दशक में महालूट का काल चला। बैंकों के दो बड़े महा घोटाले जिनमे विजय माल्या द्वारा साढ़े नौ हजार करोड़ और नीरव मेहूल मामा भांजे की करीब साढे बारह हजार करोड़ लोन हड़पकर उनके विदेशों में डेरा जमा लेने की खबर सबको मालूम है। पेन बनाने वाली रोटोमेक कंपनी द्वारा करीब साढ़े तीन हजार करोड़ की बैंक हेराफेरी की और इसकी भुक्तभोगी बैंक आफ बड़ौदा ने तो अपने इस घोटाले को जानते हुए भी इसे दो साल तक छिपाये रखा। इस क्रम में इलाहाबाद बैंक के सीएमडी, बैंक आफ महाराष्ट्र के एमडी सहित और कई बैंकों के उच्च अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई। आइडीबीआई बैंक के पूर्व सीएमडी जांच के दायरे में आए। इससे पूर्व में जाएं तो बैंक आफ बड़ौदा में मनी लोंड्रिंग के दो बड़ी करतूतें रंगे हाथों पकड़ी गई। और इससे पूर्व एक और सार्वजनिक बैंक के सीएमडी पचास लाख रुपये के रिश्वत मामलें में पकड़े गए। सरकारी बैंकों से इतर देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई बैंक के सीएमडी चंदा कोचर द्वारा अपने पति के कारपोरेट दोस्त को भारी भरकम लोन बिना ठोस प्रक्रिया अपनाए दिये जाने की वजह से जांच के दायरे में आ चुकी हैं। एक्सिस बैंक की एमडी शिखा शर्मा के साथ भी ऐसा हीं मामला चल रहा है। 

मौजूदा नरेन्द्र मोदी की सरकार लाख सफाई दे कि बैंकों में एनपीए घोटाले की जमीन पूर्ववर्ती युपीए के कार्यकाल में तैयार हुई थी बल्कि असलियत तो ये है इन सारे भ्रष्टाचार और घोटाले की कलई मौजूदा नरेन्द्र मोदी नीत एनडीए-2 सरकार के कार्यकाल में ही खुली है तो फिर वह इस अपयश के भागी होने से आखिर कैसे बच सकती है। सवाल ये है कि एनडीए सरकार के आगमन के बाद बैंकों के एनपीए का प्रतिशत 6.5 प्रतिशत के आसपास था वह बीते चार साल के दौरान 9.6 प्रतिशत कैसे हो गया तथा एनपीए की रकम 6.5 लाख करोड़ से बढक़र करीब 9.5 लाख करोड़ कैसे हो गई। यूपीए के कार्यकाल में अधिकतर बैंकों के मुनाफे का स्तर मौजूदा मोदी सरकार के काल में महाघाटे के मोड में कैस आ गया। नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार को देश के बैंकों में भस्मासुर सरीखी रूप लेती एनपीए की समस्या तथा परत दर परत बैंकों में खुल रहे घोटाले की दास्तान पर तो जबाब देना ही पड़ेगा।

 इन सारे मामलों पर पहला प्रश्र सरकार जनित है तथा दूसरा प्रश्र व्यवस्था जनित है। सरकार जनित मामला ये है इस मोदी सरकार ने अपनी तमाम कल्याणकारी योजनाओं के लिये इन्हीं सार्वजनिक बैंकों का ही मुख्य रुप से सहारा लिया है। मोदी सरकार की जनधन योजना जिसके अंतर्गत गांव और कमजोर वर्ग के लोगों के करीब 32 करोड़ एकाउंट खोले गए, जनसुरक्षा के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा की तीन योजनाओं में करीब बारह करोड़ लोगों को े जोड़ा गया। इसी तरह से प्रधानमंत्री मुद्रा बैंकिंग योजना के तहत जिनमे करीब पांच करोड़ लोगों को अपने स्वरोजगार चलाने के लिये करीब दस लाख करोड़ रुपये का लोन दिया गया। इसी तरह तकनीकी व शैक्षिक लोगों केे स्वरोजगार प्रदान करने वाली स्टार्टअप व स्टैंड अप योजनाएं भी बैंकों से मिलने वाले लोन व परियोजना पूंजी पर आश्र्रित रहीं हैं। अब सवाल ये है कि मोदी सरकार की ये सभी योजनाएं क्या बैंकों के व्यावसायिक हितों का गला घोट कर नही चलायी जा रही हैं और दूसरा क्या यह बैंकों के हितों की कीमत पर इस सरकार के लोकप्रियतावाद का परचम नहीं लहराया जा रहा है। फिर सवाल ये है इन बैंकों का घाटा अचानक पिछले चार साल में ही क्यों बढऩे लगा। सवाल यह भी है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार व रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के तहत प्राथमिकता क्षेत्र में 45 प्रतिशत की ऋण देनदारी की बाध्यता क्या उनके कारोबार को विगत से ही नुकसानदेह तो नहीं बना रहा था, जिस बात की कई लोगों के मन में आशंका रहती है। परंतु आंकडें़ तो ये बताते हैं कि बैंकों के एनपीए क ा एक तिहाई हिस्सा तो कुछ चंद कारपोरेट द्वारा लोन नहीं चुकाने की वजह से तथा इतना ही हिस्सा मध्यम श्रेणी के कारपोरेट तथा संगठित उद्योगों की तरफ से देनदारी नहीं चुकाये जाने की वजह से है। जहां तक सूक्ष्म ऋणों यानी माइक्रों फायनेन्स में एनपीए की बात है तो उसकी अदायगी 98 से 1०० प्रतिशत के बीच है। मोदी सरकार को चाहिए कि वह बैंकों के एनपीए को लेकर पहले तो एक इमानदार श्वेत पत्र व स्थिति पत्र जारी करें और बताएं किन वजहों से पिछले चार सालों में बैंकों का घाटा व एनपीए दोनो इस कदर बढ़ा। क्या इसके लिये सरकारी की नोटबंदी और इसके जरिये भारी मात्रा में आए नकली व जाली नोट भी तो नहीं जिम्मेदार हैं?

बैंकों में सुधार की बात करें तो जब हर्षद मेेहता शेयर बाजार घोटाला हुआ था तो बताया गया था कि देश में पूंजी बाजार के नियमन व सुरक्षा संबंधी कानून व मशीनरी बेहद दोषपूर्ण थी। फिर देश में पूंजी बाजार के बेहतर नियमन व संचालन के लिये सेबी नामक संस्था का आगमन हुआ। इसके बाद कमोबेश पूंजी बाजार में होने वाले घोटाले में काफी हद तक नकेल लगी। इसके बाद देश के बेईमान कारोबारियों ने देश के बैंकों की तरफ रूख किया और राजनीतिक पैरवी और बड़े बैंक अधिकारियों से रसूख बनाकर और करोड़ों की रिश्वत देकर अरबों खरबों के लोन उनसे डकार लिये गए। 1-2 लाख रुपये लोन लेने वाला किसान अपनी फसल मरने पर बैंकों के लोन नहीं चुकाने के डर से अपनी आत्महत्या के लियेे मजबूर हो जाता है तो दूसरी तरफ बैंकों से अरबों खरबों लोन लेने वाले बड़े कारोबारी सुरा व सुंदरियों के साथ विदेशों की तरफ आसानी से रू ख कर जाते हैं। अब वित्त मंत्री बैंकों से अपील करते हैं कि आप लोन देने में विभेदकारी रवैया अपनाने से बचे तो अब हम क्या यह माने कि बैंकों में लोन दिये जाने में अबतक अपनायी जाने वाली स्वविवेक की प्रणाली से देश में इतने ज्यादा लोन घोटाले हुए।

यदि मोदी सरकार ये दावा करती है कि वह पिछली सरकारों से भिन्न है और वह भ्रष्टाचार को रत्ती भर भी नहीं सहने के लिये आमादा है तो आखिर बैंक डिफाल्टर कानून व कंपनी दिवालिया निस्तारण कानून को और मजबूत बनाने के लिये वह नीरव मोदी व विजय माल्या घोटाले का इंतजार क्यों कर रही थी। हमारे देश की व्यवस्था की हकीकत ये है कि कोई भी सरकार व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की जहमत नहीं उठाना चाहती।  और जब कोई महाघोटाला अंजाम ले लेता हैैै तो तब जाकर वह उसपर रोक लगाने की कोई प्रक्रिया अपनाती है। पूर्व में मोदी सरकार तो बैंकों में फरेब व जालसाजी रोकने को लेकर इनमे कोई सरंचनात्मक सुधार लाने के बजाए इनमे या तो सिर्फ पूंजीकरण की बात कर रही थी या फिर बैंकों के आपसी विलयन को हवा दे रही थी। पर अब जब पानी सर से उपर चला गया तो सरकार ने सभी छोटे बड़े कर्जधारकों से वसूली प्रक्रिया तेज किया है तथा कई बड़े एनपीए धारकों को दिवालिया निस्तारण कानून के जकडऩ में लाने की तैयारी की जा रही है। पर बात वही है कि बड़ी देर कर दी हजूर आते आते।