नोटबंदी मोदी सरकार की एक महान असफलता
नोटबंदी मोदी सरकार की एक महान असफलता

मनोहर मनोज

देश ने नोटबंदी के जरिये क्या हासिल किया, आखिरकार आरबीआई की आधिकारिक रिपोर्ट आने के बाद इसके असल परिणामों  का भी पटाक्षेप हो गया। आखिर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने भी वही बात कही है जिस तरह की प्रतिक्रियाएं पिछले साल के दौरान देश के तमाम अर्थचिंतकों व सुधीजनों ने व्यक्त करीं। आठ नवंबर 2016 से करीब डेढ महीने चली नोटबंदी के करीब बीस महीने बीतने के बाद तक इस विषय पर देश भर में विशद चर्चा परिचर्चा हुई। सब जगह यही प्रतिवाद हुआ कि जिस लाव लश्कर के साथ देश में विमुद्रीकरण का एक देशव्यापी तमाशा हुआ, नोटों की राशनिंग हुई और देश के सौ करोड़ लोगों ने देश के करीब एक लाख बैंक शाखाओं तथा करीब दो लाख एटीएम मशीनों के सामने घंटों कतारों में बिताये, आखिर उससे देश में कितना काला धन बाहर आया। इससे भ्रष्टाचार पर कितनी नकेल कसी। इससे कितने जाली नोटों की धरपकड़ हुई। इससे देश का सिस्टम कितना बदला। इससे सरकार की मशीनरी कितनी चाक चौबंद हुई। इससे आतंक व नक्सल सिंडिकेट का कितना नुकसान हुआ। देखा गया कि इन सभी मानकों पर देश को कुछ नहीं मिला, यह सब फिसड्डी साबित हुआ। केवल एक बेहतर मुहिम का इस नोटबंदी के बहाने देश में आगाज हुआ, वह था देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने का अभियान। पर सवाल यह है कि इस प्रक्रिया का पांच सौ व एक हजार के नोटों को अप्रचलित कर तथा नये पांच सौ व दो हजार के नोटों के जरिये प्रतिस्थापन किये जाने से क्या वास्ता। डिजीटल भुगतान को बढ़ावा देने का अभियान सरकार बिना नोटबंदी के भी ला सकती थी। नोटबंदी के दौरान  डिजीटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिये जिस तरह से सरकार ने कई छूटें व रियायते दीं, वह बिना नोटबंदी लाये भी दिया जा सकता था। हकीकत ये है कि देश में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां डिजीटल भुगतान पर लगने वाले अतिरिक्त चार्जेज से वह लोगों को छूट नहीं दिला पायी है।

अब सवाल है कि आखिर मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला क्यों लिया। क्या यह फैसला पूरी तरह से सुविचारित फैसला नहीं था। क्या इस फैसले के दुष्परिणामों व दुष्प्रभावों से सरकार पूरी तरह से बेखबर थी। क्या मोदी सरकार इस फैसले के आलोक में देश के जनजीवन और समूची अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले चोट का पूरा अंदाजा नहीं लगा पायी। क्या मोदी सरकार द्वारा यह        फ ैसला महज देश में भ्रष्टाचार को लेकर बड़़ी हलचल मचाने व लोगों को हिलोरे खिलाने वाली अपनी एक पहल प्रदर्शित करने के रूप में लिया गया। एक ऐसा फैसला जिससे देश में मौजूद काले धन के सिर्फ छह प्रतिशत हिस्से पर असर पडऩा था। एक ऐसा फैसला जिसमें देश को होने वाली कथित प्राप्ति से करीब सौ गुना ज्यादा घाटा हुआ। बताया जाता है कि सरकार को करीब 0.7 फीसदी नहीं प्राप्त होने वाली करेंसी जिसकी रकम करीब दस हजार करोड़ बैठती है उससे तीन गुना ज्यादा नये नोटों की छपाई में खर्च हो गए। देश की अर्थव्यवस्था को करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो गया। 

अलबत्ता इस फैसले से मोदी सरकार आम लोगों को यह संदेश देने में जरूर कामयाब हुई कि बड़े पूंजीपतियों व काला धन धारकों पर सरकार द्वारा कोई बड़ा हमला किया गया है। इसका नतीजा कुछ विधानसभा चुनावों में उसे चुनावी सफलता के रूप में भी प्राप्त हुई। इस वजह से मोदी सरकार  इस नोटबंदी के दुष्प्रभावों की उचित पुनसर्मीक्षा नहीं कर पायी। ये बात अलग है कि भाजपा को इन विधानसभा चुनावों में सफलता वहां मौजूद एंटी इन्कंबेन्सी की वजह से मिली या फिर गरीब वोटरों को नोटबंदी के जरिये मिले किसी समाजवादी संदेश से। इस पूरे मामले का हकीकत व लब्बोलुआब ये है कि नोटबंदी के जरिये मोदी सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया जिससे लोगों को ये लगा कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार व कालेधन को लेकर कोई धर्मयुद्व छेड़ दिया हो, पर यह वास्तव में यह फैसला मोदी सरकार की सिर्फ हेकड़ेबाजी ही साबित हुआ। एक ऐसा फैसला जिससे ना तो  देश में करीब 90 प्रतिशत कालेधन पर हमला हुआ। एक ऐसा फैसला जिसमे बड़े कारपोरेट व करवंचकों तथा बैंकों के कर्ज लूटने वालों पर कोई हमला नहीं हुआ। एक ऐसा फैसला जिसमें देश के सौ करोड़ लोगों को तंबतबाह कर अंजाम दिया गया। एक ऐसा फैसला जिसमे देश के विशाल भ्रष्ट तंत्र का कोई भी बाल बांका नहीं हुआ। एक ऐसा फैसला जिससे बेनामी संपत्ति पर कोई हमला नहीं हुआ। एक ऐसा फैसला जिसमें कई नकद धन धारकों एवं भ्रष्ट बैंककर्मियों के बीच सांठगांठ बनाकर कई अनियमितताओं को अंजाम दिया। एक ऐसा फैसला जिसमें नकद काला धन के संचय को और बड़े दो हजार के नोटों के जरिये पनपने का और अवसर प्रदान किया । एक ऐसा फैसला जिससे नकद धन पर चल रहे लाखों कारोबारी उपक्रमों की कमर टूट गयी और इसमें लाखों मजदूरों की रोजी रोटी छिन गयी। एक ऐसा फै सला जिसमें करोड़ों दुकानदारों की बिक्री ठप पड़ गयी। एक ऐसा फैसला जिससे आपातकाल सेवाओं और अस्पतालों को दुश्वारी झेलनी पड़ी। शादियां रुक गयी, एडमिशन एवं भुगतान रुक गये।

कहना ना होगा जिस तरह मोदी नीत एनडीए सरकार ने वर्ष 2014 में अपनी दर्जनों बेहतरीन कल्याणकारी योजनाओं तथा कुछ संरचनात्मक परिवर्तन लाने वाली अपने कुछ पहल के जरिये अपने कार्यकाल की शुरूआत की उससे यह पूरी उम्मीद बनी थी कि यह सरकार अपने विकास दर को दो अंकों में ले जाने में कामयाब हो जाएगी। अपने कार्यकाल के पहले दो साल सात फीसदी से उपर विकास दर लाने के बाद इस सरकार ने ऐन मौके पर भ्रष्टाचार पर वास्तविक व एक चौमुखी पहल लाने के बजाए एक ऐसा तुगलकी फ ैसला ले लिया जिससे भ्रष्टाचार व काले धन पर तो प्रभावी रोक तो नहीं लगी बल्कि देश केे विकास, आमदनी व रोजगार सबका पलीता लगा गई। ना केवल विकास दर पूरी तरह से प्रभावित हुआ, बल्कि इसके तदंतर जीएसटी की अपर्याप्त तैयारियों व दोषपूर्ण प्रणालियों की वजह से देश के व्यावसायिक जगत को तगड़ा नुकसान पहुंचा। अब नरेन्द्र मोदी सरकार अपने सार्वजनिक वक्तव्यों में नोटबंदी का उल्लेख नहीं करती, क्योंकि उसे मालूम है कि इस पहल से असल में अर्थव्यवस्था व जनजीवन का नुकसान पहुंचा है। वह केवल इस बात की दुहाई दे रही है कि इससे देश में आयकर रिटर्न धारकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। आयकर रिटर्न की बाध्यता लाने के लिए सरकार के पास कई फार्मूले हैं, इसे नोटबंदी से जोड़ा जाना बेहद अतार्किक है। सरकार जब तक अपनी मशीनरी के समूचे कामकाज को पूरे तरीके से चाकचौबंद नहीं बनाती, इन सरीखे अभियानों का कोई मतलब नहीं। हमें यह नहीं भुलना होगा कि देश में भ्रष्टाचार पर एक प्रभावी हमला बोलने के एक नहीं अनेकानेक विकल्प हैं। अभी तक सरकार यह मानकर भ्रष्टाचार पर हमला कर रही है कि हमारा शासक तंत्र बेइमान नहीं हैं बल्कि शासित तंत्र हीं बेईमान है, इसीलिए आधार कार्ड के उपयोग के जरिये करीब पिचासी हजार करोड़ बचाने की बात का उल्लेख सरकार करती है, पर वह इस बात का उल्लेख नहीं करती कि सरकारी तंत्र और इसके मजबूत लाबी पर अगर ढंग से हमला हुआ तो देश को करीब बीस लाख करोड़ रुपये की बचत होगी।